👉ईश्वर पूजा का वैदिक स्वरूप।
👉लेखकः—पं० रामचन्द्र देहलवी ।
👉प्रकाशक—श्री घूडमल प्रह्लाद कुमार आर्य धर्मार्थ न्यास।
हिण्डौन सिटी।
आमुख तार्किक शिरोमणि पं० श्री रामचन्द्रजी देहलवी का ईश्वर-पूजा विषयक यह व्याख्यान प्रकाशित तो पहले भी कई बार हुआ है, उनके जीवनकाल में भी छपा था, परन्तु इसका प्रकाशन करनेवालों ने इसे प्रकाशित करते हुए इस व्याख्यान की भाषा शैली व पाठकों का ध्यान न रखा। श्री पण्डितजी तो समय की आवश्यकता व अपने अभ्यास के अनुसार अरबीफ़ारसी के शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया करते थे।
इस व्याख्यान में बहुत मौलिकता है। अत्यन्त उपयुक्त दृष्टान्त देकर इसकी रोचकता भी बढ़ा दी है, परन्तु इसमें कुछ तो अतिकठिन फ़ारसी-अरबी शब्द हैं, जो हिन्दी में अटपटे भी लगते हैं, देवियाँ, बच्चे तथा उर्दू के प्रभाव से मुक्त प्रान्तों के लोग नहीं समझ पाते। कुछ वाक्यों में फ़ारसी प्रयोग के साथ हिन्दी के भाव भी दे रखे हैं, इस प्रकार की आवश्यकता व्याख्यान में तो होती है, परन्तु लिखते समय वाक्यों की एक सीमा होती है।
भाषण की समाप्ति पर एक प्रसिद्ध फ़ारसी सर दी गई है, परन्तु साथ अर्थ कभी नहीं छपा। इसमें अब मुन्तशिर, मुतगय्यर, मुकैयद आदि बोझिल शब्दों से इसे मुक्ति दिला दी है और ‘तजस्सुम’ आदि कई अशुद्ध निरर्थक शब्द छप गये थे, वे भी ठीक कर दिये हैं। अब यह जन-जन के लिए व बुद्धिजीवी लोगों तथा उपदेशक वर्ग सबके लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।
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