Facebook Twitter Instagram YouTube
  • NEWSLETTER
  • CONTACT US
  • FAQs
Devavanisanskritam
Select category
  • Select category
  • moral books
  • Ved/Aarsh Granth
  • Sanskrit Language
  • Arya Samaj
  • Yajna etc.
  • History
  • General Books
  • Spirituality
  • Ayurveda
  • Biographies
  • Mata-Matantar
  • Kids
  • Yoga and Philosophy
  • Bhajan
  • Motivational
  • Naturopathy
  • Social Books
Login / Register
0 Wishlist
0 Compare
0 items / ₹0.00
Menu

देववाणी संस्कृतं सेवा🤝

Browse Categories
  • Arya Samaj
  • Sanskrit/Arya Samaj Magazines
  • Ayurveda
  • Bhajan
  • Biographies
  • History
  • General Books
  • Yajna etc.
  • Kids
  • Mata-Matantar
  • Motivational
  • Puja-Vastu
  • Sanskrit Language
  • Spirituality
  • Ved/Aarsh Granth
  • Yoga and Philosophy
  • Home
  • Shop
  • Contact Us
  • About Us
  • Catalogue
Watch video
Click to enlarge
HomeArya Samaj शुद्ध सत्यनारायण कथा
Back to products
Next product
नमस्ते ही क्यों? ₹20.00

शुद्ध सत्यनारायण कथा

₹17.00

👉शुद्ध सत्यनारायण कथा ✍
 
प्रणेता—आचार्य प्रेमभिक्षु 
सम्पादक—आचार्य स्वदेशः 
प्रकाशक—
सत्य प्रकाशन, मथुरा.

Compare
Add to wishlist
Share
Facebook Twitter Pinterest linkedin Telegram
  • Description
  • Reviews (0)
Description

।। शुद्ध सत्यनारायण कथा ।।

👉संक्षिप्त विवरण ✍
कष्ट और क्लेश से कराहते मानव की सुख शान्ति का एक ही मार्ग है, दूसरा नहीं। वह मार्ग है.. जिसे हमारे देश की सरकार ने अपना आदर्श बनाया है और जिसका वर्णन वेद, उपनिषद् तथा ब्राह्मण ग्रन्थ एक स्वर में करते हैं। वह आदर्श है – ‘सत्यमेव जयते’ अर्थात् ‘सदा सत्य की जय होती है। शतपथ ब्राह्मण में कहा- असतो मा सद् गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमयेति।’
प्रभो हमें असत्य से सत्य की ओर ले चल, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चल, मृत्यु न देकर अमृत दे, परन्तु ‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः’ प्रत्येक वस्तु जो उत्पन्न होती है, वह अवश्य ही नष्ट होती है। अतः यह मृत्यु जिससे हम बचना चाहते हैं, क्या है ? मृत्यु का वास्तविक अर्थ है- दुख, कष्ट, क्लेश, बीमारी, भूख, व्यभिचार, दुराचार, परतन्त्रता, भीरुता, कमजोरी, हार, घूस, ब्लैक और इस प्रकार के सभी दुर्गुण और दुरित। और अमृत का अर्थ है वे सभी सद्गुण और वस्तुयें जो कल्याणकारी हैं। भक्त इच्छित वस्तुओं की इच्छा से और दैन्यता जनित बुरी स्थिति एवं बुराइयों से बचने के लिए प्रार्थना करता है तो कहता है- मृत्यु न दे, अमृत दे। इसी प्रकार अन्धकार के बदले वह ज्योति माँगता है।
झूठ अन्धकार भी है, मृत्यु भी। सत्य रोशनी भी है, जीवन भी। तो सत्य की प्राप्ति में ही प्रकाश और अमृत की प्राप्ति भी निहित है। इसलिये
👉“एकै साधे सब सधे सब साधे सब जाय, जो तू सींचे मूल को फूले-फले अघाय।” – इस उक्ति के अनुसार सत्य ही सर्वस्व है। यहाँ तक कि सत्य ही नारायण है।
हमारे देश में ‘सत्यनारायण कथा’ का विशेष प्रचलन है। दु:खों से बचने के लिये हम सत्यनारायण की कथा कराते हैं कि हम सत्यनारायण भगवान् के उपासक हैं, फिर भी दु:खी हैं। क्यों? जल के समीप बैठकर हम शीतलता का अनुभव करते हैं और अग्नि के पास बैठकर अग्नि का, पर आनन्दघन सत्यनारायण की उपासना करके भी उसके समीप बैठकर भी आनन्द-शून्य क्यों ? बहुत सीधा सा उत्तर है इसका कि हम उपासना करते तो हैं, पर उसके विज्ञान को बिना जाने। हम ईश्वर को मानते तो हैं, पर उसके स्वरूप को बिना जाने। विद्युत् (बिजली) कितनी उपयोगी वस्तु है, पर उसका अनेकविधि लाभ वही ले सकता है जो उसके विज्ञान को, उसके रहस्य को जानता है। जो उसके ‘टैकनिक से प्रयोग-विधि से अपरिचित हैं वह यदि प्रयोग करेगा तो ‘खतरा’ उपस्थित रहेगा, यहाँ तक कि जीवन हानि भी सम्भव है। ठीक इसी प्रकार उपासना के विज्ञान, उसके रहस्य को बिना जाने उपासना करने वाला उपासना के लाभ-ईश्वरीय गुणों से युक्त होकर शान्ति प्राप्ति से तो वञ्चित रहता ही है, प्राय: उसका दुरुपयोग करने से आत्मिक जीवन की हानि भी कर बैटता है, अर्थात् अनेकविध दुर्गुणों और दुरितों का और भी अधिक शिकार बन अमूल्य मानव जीवन को नष्ट कर लेता है।
जो जितना बड़ा ‘भगत’ जिसका जितना लम्बा तिलक वह उतना ही बड़ा ठग, दुराचारी पापग्रस्त है, ऐसा प्रायः देखने में आता है। इतना ही नहीं हम तो देखते हैं कि संसार के सब देशों से अधिक आलसी, निकम्मे, हरामखोर, कर्तव्य-शून्य और चरित्रहीन लोग हमारे यहाँ हैं, इसका परिणाम यह हुआ है कि हमारे देश की नई पीढ़ी धर्म, ईश्वर और भक्ति (उपासना) से ही घृणा करने लगी है।
इस दुरावस्था का मूल है- सत्य नारायण कथा, सन्तोषी माता, सतसाईं बाबा, बाल योगेश्वर रजनीश आदि के मिथ्या महात्म्य की कहानियाँ अथवा सत्यनारायण भगवान् की उपासना के विज्ञान या रहस्य को बिना जाने उपासना करना।
वेदों में इसी उपासना-विज्ञान का विधान विस्तार से वर्णित है। पवित्र गायत्री मन्त्र के चार पदों में सत्यनारायण प्रभु की उपासना के इसी विज्ञान (१) ईश्वर का नाम-रूप (२) ईश्वर का कर्तव्य (३) ईश्वर प्राप्ति का साधन (४) और उपासना की फल-श्री का संक्षेप में विवेचन है। और गायत्री मन्त्र का भी सार है त्रिमात्रिक-‘ओ३म्’। यह वेदोक्त सत्यनारायण-उपासना-विज्ञान हमें कहता है।
(१) ईश्वर, जीव, प्रकृति-इन तीनों सत्यों में ईश्वर पराकाष्ठा का सत्य है। नारायण ही सत्य है। (२) पर नारायण की प्राप्ति का विज्ञान है- सत्य ही नारायण है ऐसा मानकर सम्पूर्ण जीवन-कर्त्तव्य, नीति, सदाचार, मर्यादा एवं विवेक के आधार पर विचार एवं आचरण करना सत्य-निष्ठा का समग्र रूप है। कर्तव्य क्षेत्र में एक ब्राह्मण का सत्य है-अज्ञान नाश, एक क्षत्रिय का सत्य है अन्याय-नाश करना। और एक वैश्य का सत्य अभाव नाश करना और शूद्र का जीवन सत्य है कि इन तीनों का श्रम साधना से सहयोग सब करना। इस गुण कर्म-कर्म स्वभावानुसार प्राप्त वर्णाश्रम धर्म का पालन लाभ हानि यश-अपयश का बिना विचार किये सभी के सुख की कामना से, यज्ञ भावना से ईश्वराज्ञा समझकर करना ही सत्य नारायण’ भगवान् का पूजन है। यह वेदोक्त सत्यनारायण कथा जब तक हमारे आचरण और जीवन-व्यवहार से मुखरित होती रही, हम जगद्गुरु और विश्व सम्राट् बने रहे। दुर्भाग्य से आगे यह स्थिति नहीं रही। यह जो सत्यनारायण कथा आजकल प्रचलित है, इसे तो सत्यनारायण कथा सुनने वालों की कहानी कहा जा सकता है। अनेक असम्भव और अविवेक पूर्ण कल्पनाओं के कारण से इसे शुद्ध ‘कथा-महात्म्य’ भी कह सकते हैं। इस मिथ्या माहात्म्य से तो अनेक विध पाप, दुराचार और भ्रष्टाचार को ही प्रोत्साहन मिलता रहा है। वस्तुतः जिस कथा को सुनकर शतानन्द (ब्राह्मण) उल्कामुख एवं तुंगध्वज (राजा) क्षत्रिय साधु नामक वैश्य तथा लकड़हारा (शूद्र) और लीलावती कलावती आदि का (यदि इन नामों को सत्य मान लिया जावे तो) आत्मकल्याण हुआ था वह सत्य नारायण की शुद्ध कथा तो वेद और वेदानुकूल उपनिषद् आदि ग्रन्थों में ही है।
महर्षि दयानन्द के मानव-समाज पर अमित उपकार हैं, उनमें महत्तम उपकार हैं- उन्होंने सत्यनारायण ओ३म् की उपासना की भूली वैदिक डगर हमें फिर से बताई, उसी के पुण्य प्रकाश में हमारा यह लघु प्रयास है। आर्य जगत् में ‘सत्यनारायण कथा’ के रूप में कई पुस्तकों के होते हुए भी शुद्ध सत्यनारायण कथा के प्रणयन की आवश्यकता इसके परायण से स्वयं ही स्पष्ट हो जावेगी।
पवित्र गायत्री एवं ओंकार के जपानुष्ठान के रूप में ईशोपसना की सरलतम एवं श्रेष्ठतम विधि इस कथा के माधयम से प्रस्तुत की गई है। प्रायः सभी वैदिक सिद्धान्त भी इस कथा में समाविष्ट हुए हैं। हमारे परिवार और उनमें भी मातायें एवं बालक इससे विशेष रूप से लाभान्वित हों, ऐसा यत्न रहा है। आरम्भ हमने प्रचलित कथा के क्रम में ही किया है। नैमिषारण्य तीर्थ को नारद मुनि की ध्यानावस्था के अलंकार के रूप में प्रस्तुत करने का विचार था, जैसा कि हमने प्रस्तावना में विवेचन किया है, पर इसे भी जन सामान्य के लिए क्लिष्ट कल्पना अनुभवकर कथा प्रवाह को सहज रूप देना ही उपयुक्त समझा है।
इति।।

👉शुद्ध सत्यनारायण कथा ✍

प्रणेता—आचार्य प्रेमभिक्षु
सम्पादक—आचार्य स्वदेशः
प्रकाशक—
सत्य प्रकाशन, मथुरा.

Special features

  • Number Of Pages: 64

How to find us

Patanjali,Haridwar
Phone: +91-9582104261

Ask a question

    Your Name (required)

    Your Email (required)

    Your Message

    Reviews (0)

    Reviews

    There are no reviews yet.

    Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.

    Related products

    -10%
    Compare
    Close

    दो मित्रों की बातें 

    ₹50.00 ₹45.00
    पुस्तक नाम--दो मित्रों की बातें  लेखक -- स्व. आचार्य  प्रेमभिक्षु   
    Add to wishlist
    Add to cart
    Quick view
    -20%
    Compare
    Close

    सत्संग-गौरव

    ₹50.00 ₹40.00
    पुस्तक नाम—सत्संग-गौरव लेखकः --आचार्य नन्दकिशोर 
    Add to wishlist
    Add to cart
    Quick view
    -20%
    Compare
    Close

    वेदों में पुनरुक्ति दोष नहीं 

    ₹150.00 ₹120.00
    पुस्तक नाम--वेदों में पुनरुक्ति दोष नहीं 
    Add to wishlist
    Add to cart
    Quick view
    -5%
    Compare
    Close

    ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका

    ₹200.00 ₹190.00
    पुस्तक नाम—ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका  लेखक -- महर्षि दयानन्द सरस्वती जी   
    Add to wishlist
    Add to cart
    Quick view
    -14%
    Compare
    Close

    भारतीय संस्कृति के तीन प्रतीक–(ओ३म् , आर्य, नमस्ते )

    ₹35.00 ₹30.00

    पुस्तक नाम--भारतीय संस्कृति के तीन प्रतीक---ओ३म् , आर्य, नमस्ते |

     
    Add to wishlist
    Add to cart
    Quick view
    Compare
    Close

    विज्ञान क्या है ?

    ₹60.00
    पुस्तक नाम--विज्ञान क्या है ?  
    Add to wishlist
    Add to cart
    Quick view
    -20%
    Compare
    Close

    कन्या-गौरव

    ₹50.00 ₹40.00
    पुस्तक नाम—कन्या -गौरव लेखकः --आचार्य नन्दकिशोर 
    Add to wishlist
    Add to cart
    Quick view
    Compare
    Close

    मांसाहार 

    ₹80.00
    पुस्तक नाम--मांसाहार   
    Add to wishlist
    Add to cart
    Quick view

    • INFORMATION
      • About Us
      • Our Shop
      • Contact Us
      • Our Sitemap
    • Our Policy
      • Privacy Policy
      • Terms of Service
      • Delivery Policy
      • Return Policy
    • USEFUL LINKS
      • Contact Us
      • Our Sitemap
    Our Social Links:
    Facebook Twitter Instagram YouTube
    Join our newsletter!

    Devavanisanskritam 2020 Developed ByWebicasso Technologies
    Shop
    0 Wishlist
    0 items Cart
    My account

    Shopping cart

    close

    WhatsApp Us

    • Menu
    • Categories
    • Arya Samaj
    • Sanskrit/Arya Samaj Magazines
    • Ayurveda
    • Bhajan
    • Biographies
    • History
    • General Books
    • Yajna etc.
    • Kids
    • Mata-Matantar
    • Motivational
    • Puja-Vastu
    • Sanskrit Language
    • Spirituality
    • Ved/Aarsh Granth
    • Yoga and Philosophy
    • Home
    • Shop
    • Contact Us
    • About Us
    • Catalogue
    • Wishlist
    • Compare
    • Login / Register

    Sign in

    close

    Lost your password?
    No account yet? Create an Account
    Scroll To Top
    We use cookies to improve your experience on our website. By browsing this website, you agree to our use of cookies.
    More info Accept